डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय
महान शिक्षाविद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन – जीवन परिचय
भारत को शिक्षा के क्षेत्र में नई ऊँचाइयों पर ले जाने वाले महान शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन प्रतिवर्ष 5 सितंबर को शिक्षकों के सम्मान के रूप में सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है।
राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरुतनी गॉव में 5 सितंबर 1888 को हुआ था। साधारण परिवार में जन्में
राधाकृष्णन का बचपन तिरूतनी एवं तिरूपति जैसे धार्मिक स्थलों पर बीता । वह शुरू से ही पढाई-लिखाई में काफी रूचि रखते थे, उनकी प्राम्भिक शिक्षा क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल में हुई और आगे की पढाई मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में पूरी हुई। स्कूल के दिनों में ही डॉक्टर राधाकृष्णन ने बाइबिल के महत्त्वपूर्ण अंश कंठस्थ कर लिए थे , जिसके लिए उन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान दिया गया था।कम उम्र में ही उन्होंने स्वामी विवेकानंद और वीर सावरकर को पढा तथा उनके विचारों को आत्मसात भी किया। उन्होंने 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और छात्रवृत्ति भी प्राप्त की । क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास ने भी उनकी विशेष योग्यता के कारण छात्रवृत्ति प्रदान की। डॉ राधाकृष्णन ने 1916 में दर्शन शास्त्र में एम.ए. किया और मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में इसी विषय के सहायक प्राध्यापक का पद संभाला।
डॉ. राधाकृष्णन के नाम में पहले सर्वपल्ली का सम्बोधन उन्हे विरासत में मिला था। राधाकृष्णन के पूर्वज ‘सर्वपल्ली’ नामक गॉव में रहते थे और 18वीं शताब्दी के मध्य में वे तिरूतनी गॉव में बस गये। लेकिन उनके पूर्वज चाहते थे कि, उनके नाम के साथ उनके जन्मस्थल के गॉव का बोध भी सदैव रहना चाहिए। इसी कारण सभी परिजन अपने नाम के पूर्व ‘सर्वपल्ली’ धारण करने लगे थे।
डॉक्टर राधाकृष्णन पूरी दुनिया को ही एक विद्यालय के रूप में देखते थे । उनका विचार था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सही उपयोग किया जा सकता है। अत: विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए।
अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से भारतीय दर्शन शास्त्र कों विश्व के समक्ष रखने में डॉ. राधाकृष्णन का महत्त्वपूर्ण योगदान है। सारे विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा की गई। किसी भी बात को सरल और विनोदपूर्ण तरीके से कहने में उन्हें महारथ हांसिल था , यही कारण है की फिलोसोफी जैसे कठिन विषय को भी वो रोचक बना देते थे। वह नैतिकता व आध्यात्म पर विशेष जोर देते थे; उनका कहना था कि, “आध्यात्मक जीवन भारत की प्रतिभा है।
1915 में डॉ.राधाकृष्णन की मुलाकात महात्मा गाँधी जी से हुई। उनके विचारों से प्रभावित होकर राधाकृष्णन ने राष्ट्रीय आन्दोलन के समर्थन में अनेक लेख लिखे। 1918 में मैसूर में वे रवीन्द्रनाथ टैगोर से मिले । टैगोर ने उन्हें बहुत प्रभावित किया , यही कारण था कि उनके विचारों की अभिव्यक्ति हेतु डॉक्टर राधाकृष्णन ने 1918 में ‘रवीन्द्रनाथ टैगोर का दर्शन’ शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित की। वे किताबों को बहुत अधिक महत्त्व देते थे, उनका मानना था कि, “पुस्तकें वो साधन हैं जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं।“ उनकी लिखी किताब ‘द रीन आफ रिलीजन इन कंटेंपॅररी फिलॉस्फी’ से उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली ।
गुरु और शिष्य की अनूठी परंपरा के प्रवर्तक डॉ.राधाकृष्णन अपने विद्यार्थियों का स्वागत हाँथ मिलाकर करते थे। मैसूर से कोलकता आते वक्त मैसूर स्टेशन डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जय-जयकार से गूँज उठा था। ये वो पल था जहाँ हर किसी की आँखे उनकी विदाई पर नम थीं। उनके व्यक्तित्व का प्रभाव केवल छात्राओं पर ही नही वरन देश-विदेश के अनेक प्रबुद्ध लोगों पर भी पङा। रूसी नेता स्टालिन के ह्रदय में फिलॉफ्सर राजदूत डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के प्रति बहुत सम्मान था। राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन अनेक देशों की यात्रा किये। हर जगह उनका स्वागत अत्यधिक सम्मान एवं आदर से किया गया। अमेरिका के व्हाईट हाउस में अतिथी के रूप में हेलिकॉप्टर से पहुँचने वाले वे विश्व के पहले व्यक्ति थे।
डॉ. राधाकृष्णन ने कई विश्वविद्यालयों को शिक्षा का केंद्र बनाने में अपना योगदान दिया। वे देश की तीन प्रमुख यूनिवर्सिटीज में कार्यरत रहे :
1931 -1936 :वाइस चांसलर , आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालय
1939 -1948 : चांसलर , बनारस के हिन्दू विश्वविद्यालय
1953 – 1962 :चांसलर ,दिल्ली विश्वविद्यालय
1939 -1948 : चांसलर , बनारस के हिन्दू विश्वविद्यालय
1953 – 1962 :चांसलर ,दिल्ली विश्वविद्यालय
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की प्रतिभा का ही असर था कि, उन्हें स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया। 1952 में जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर राधाकृष्णन सोवियत संघ के विशिष्ट राजदूत बने और इसी साल वे उपराष्ट्रपति के पद के लिये निर्वाचित हुए।
1954 में उन्हें भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
1962 में राजेन्द्र प्रसाद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति का पद संभाला।
उनके राष्ट्रपति बनने के कुछ समय बाद विद्यार्थियों का एक दल उनके पास पहुंचा और उनसे आग्रह किया कि वे ५ सितम्बर उनके जन्मदिन को टीचर्स डे यानि शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं। डॉक्टर राधाकृष्णन इस बात से अभिभूत हो गए और कहा, ‘मेरा जन्मदिन ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाने के आपके निश्चय से मैं स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करूँगा।’ तभी से 5 सितंबर देश भर में शिक्षक दिवस या Teachers Day के रूप में मनाया जा रहा है।
डॉ. राधाकृष्णन 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति रहे , और कार्यकाल पूरा होने के बाद मद्रास चले गए। वहाँ उन्होंने पूर्ण अवकाशकालीन जीवन व्यतीत किया। उनका पहनावा सरल और परम्परागत था , वे अक्सर सफ़ेद कपडे पहनते थे और दक्षिण भारतीय पगड़ी का प्रयोग करते थे। इस तरह उन्होंने भारतीय परिधानों को भी पूरी दुनिया में पहचान दिलाई। डॉ राधाकृष्णन की प्रतिभा का लोहा सिर्फ देश में नहीं विदेशों में भी माना जाता था। विभिन्न विषयों पर विदेशों में दिए गए उनके लेक्चर्स की हर जगह प्रशंशा होती थी ।
अपने जीवन काल और मरणोपरांत भी उन्हें बहुत से सम्मानो से नवाजा गया , जो इस प्रकार हैं-
1931: नाइट बैचलर / सर की उपाधि , आजादी के बाद उन्होंने इसे लौटा दिया
1938: फेलो ऑफ़ दी ब्रिटिश एकेडमी .
1954: भारत रत्न
1954: जर्मन “आर्डर पौर ले मेरिट फॉर आर्ट्स एंड साइंस ”
1961: पीस प्राइज ऑफ़ थे जर्मन बुक ट्रेड .
1962: उनका जन्मदिन ५ सितम्बर शिक्षक दिवस में मानाने की शुरुआत
1963: ब्रिटिश आर्डर ऑफ़ मेरिट .
1968: साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप , डॉ राधाकृष्णन इसे पाने वाले पहले व्यक्ति थे
1975: टेम्प्लेटों प्राइज ( मरणोपरांत )
1989: ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा उनके नाम से Scholarship की शुरुआत
1938: फेलो ऑफ़ दी ब्रिटिश एकेडमी .
1954: भारत रत्न
1954: जर्मन “आर्डर पौर ले मेरिट फॉर आर्ट्स एंड साइंस ”
1961: पीस प्राइज ऑफ़ थे जर्मन बुक ट्रेड .
1962: उनका जन्मदिन ५ सितम्बर शिक्षक दिवस में मानाने की शुरुआत
1963: ब्रिटिश आर्डर ऑफ़ मेरिट .
1968: साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप , डॉ राधाकृष्णन इसे पाने वाले पहले व्यक्ति थे
1975: टेम्प्लेटों प्राइज ( मरणोपरांत )
1989: ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा उनके नाम से Scholarship की शुरुआत
डॉ. राधाकृष्णन लम्बी बीमारी के बाद 17 अप्रैल, 1975 को प्रातःकाल इहलोक लोक छोङकर परलोक सिधार गये। देश के लिए यह अपूर्णीय क्षति थी। परंतु अपने समय के महान दार्शनिक तथा शिक्षाविद् के रूप में वे आज भी अमर हैं। शिक्षा को मानव व समाज का सबसे बड़ा आधार मानने वाले डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शैक्षिक जगत में अविस्मरणीय व अतुलनीय योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा।
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